उत्तर प्रदेश को लेकर बीजेपी सबसे आश्वस्त दिख रही थी. एक तरफ सबसे लोकप्रिय नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का चेहरा तो वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कुशल प्रशासक की छवि, डबल इंजन की इस जोड़ी की बदौलत बीजेपी पिछले दो चुनाव की तरह इस बार भी बड़े बहुमत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थी, लेकिन जमीनी हकीकत को समझने में नाकाम और रणनीति में चूक की वजह से अपने सबसे मजबूत गढ़ यूपी में बीजेपी इंडिया गठबंधन से पिछड़ गई.
उत्तर प्रदेश में दो लड़कों की जोड़ी ने बीजेपी का सामना करने के लिए साथ आना तय किया, और फिर सामाजिक समीकरण साधने की कोशिश के साथ ही अखिलेश यादव की पीडीए (PDA) यानी पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक की रणनीति काम कर गई. बीजेपी के लगातार स्वार्थ का गठबंधन के आरोप के बावजूद सपा और कांग्रेस ने सकारात्मक मुद्दों के साथ चुनाव प्रचार किया और लोगों के बीच उन मुद्दों को लेकर विश्वास बनाने में सफल रहे.
यूपी में 75 सीटों पर लड़ी थी बीजेपी
बीजेपी ने इस बार राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से 75 पर अपने उम्मीदवार खड़े किए थे, जबकि गठबंधन सहयोगी अपना दल (सोनेलाल) ने मिर्जापुर और रॉबर्ट्सगंज (सुरक्षित) सीट, सुभासपा ने घोसी और आरएलडी ने बिजनौर और बागपत से चुनाव लड़ा था. INDIA गठबंधन में शामिल कांग्रेस और सपा ने यूपी में साथ मिलकर चुनाव लड़ा. कांग्रेस ने 17 सीटों पर कैंडिडेट उतारे थे, तो वहीं बाकी सीटों पर सपा ने अपने उम्मीदवार खड़े किए थे.