नई दिल्ली. उत्तराखंड में हर साल बड़े पैमाने पर जंगल आग की भेंट चढ़ जाते हैं. इस बार भी सर्दियों के सीजन में कम बारिश और बर्फबारी होने के कारण जंगलों में पहले पर्याप्त नमी की कमी महसूस की जा रही थी और अब गर्मियों के सीजन में बढ़ता तापमान तो आग में घी का काम कर रहा है. चारों ओर जंगल धूं धूं करके जल रहे हैं. वन विभाग रोड हेड से लगे जंगलों में तो आग पर जैसे तैंसे काबू कर पा रहा है, लेकिन बाकि जंगल की आग उसके काबू से बाहर है. पूरे उत्तराखंड में अभी तक 544 फायर इंसीडेंट में 656 हेक्टेयर एरिया में जंगल आग की चपेट में आ चुके हैं. हालांकि, सरकारी रिपोर्ट को छोड़ दिया जाए, तो ये आंकडा दोगुने से भी ज्यादा बैठता है.
अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि वन विभाग गढ़वाल रीजन में जहां आग लगने की 211 घटनाएं बता रहा है, उसी रिपोर्ट में ये बात भी कह रहा है कि गढ़वाल में आग से एक भी पेड़ प्रभावित नहीं हुआ. दूसरी ओर कुमाऊं रीजन जंगलों की आग के हिसाब से एपिक सेंटर बना हुआ है. यहां अभी तक गढ़वाल की अपेक्षा कहीं ज्यादा 287 घटनाएं हो चुकी हैं. वन विभाग पूरे कुमाऊं रीजन में आग से महज एक पेड़ का नुकसान होना बता रहा है. नाम न छापने की शर्त पर फॉरेस्ट के रिटायर्ड अफसर कहते हैं ये बेहद आश्चर्यजनक है. उनका कहना था कि 544 फायर इंसीडेंट में कई हेक्टेयर जंगल चपेट में आ चुके होंगे. 656 हेक्टेयर जंगल प्रभावित होने की बात भी गले नहीं उतरती. ये आंकडा हजारों हेक्टेयर में जाएगा.
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बहरहाल, जंगल की आग से अभी तक एक वनकर्मी समेत दो लोग झुलस चुके है. उत्तराखंड में जंगल की आग से हर साल मानव क्षति भी होती रही है. 2014 से 2023 के बीच जंगल की आग के कारण 17 लोगों अपनी जान गंवा चुके हैं. जबकि इस दौरान 74 लोग घायल हुए. सबसे भीषण आग 2016 में लगी थी। तब आग लगने की 2074 घटनाओं में हजारों हेक्टेयर एरिया में जंगल आग की चपेट में आ गए थे. इस दौरान छह लोगों की मौत हुई तो 31 लोग घायल हो गए.
तब जंगलों की आग को बुझाने के लिए पहली बार एयर फोर्स के हेलीकाप्टरों की मदद ली गई थी. इस बार आग के लिहाज से कुमांऊ रीजन में अल्मोड़ा, चंपावत, पिथौरागढ़, नैनीताल और गढ़वाल में चमोली, टिहरी और उत्तरकाशी जिलों को संवेदनशील जिलों में रखा गया है. यहां चीड़ के जंगल अधिक होने के कारण आग लगने की अधिक घटनाएं हो रही हैं.
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FIRST PUBLISHED : April 25, 2024, 23:39 IST